दाग़ दिखलाते चलें हम कब तलक संसार को
प्यार तरसाता रहेगा बस ज़रा-सा प्यार को।
डर के जीने में न कुंठित ज़िन्दगी हो आपकी
हक़-परस्ती के लिए चिन्ता हुई सरकार को।
ज़िन्दगी सबकी जुड़ी रहती है कुदरत से सदा
तोड़ती जाती बनावट की खड़ी दीवार को।
हम सुधारेंगे पछत्तर साल की ग़लती मगर
आप भी बदलें ज़रा-सा आपसी व्यवहार को।
नागरिक कानून की भी जानकारी है नहीं
उसको मद में चूर देखा हमने इस इतवार को।