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दाग़ / बुझ गये ग़म की हवा से
Kavita Kosh से
रचनाकार: हसरत जयपुरी , गायक:तलत महमूद |
बुझ गये ग़म की हवा से, प्यार के जलते चराग
बेवफ़ाई चाँद ने की, पड़ गया इसमें भी दाग
हम दर्द के मारों का, इतना ही फ़साना है
पीने को शराब-ए-ग़म, दिल गम का निशाना है
दिल एक खिलौना है, तक़दीर के हाथों में
मरने की तमन्ना है, जीने का बहाना है
देते हैं दुआएं हम, दुनिया की जफ़ाओं को
क्यों उनको भुलाएं हम, अब खुद को भुलाना है
हँस हँस के बहारें तो, शबनम को रुलाती हैं
आज अपनी मुहब्बत पर, बगिया को रुलाना है
हम दर्द के मारों का, इतना ही फ़साना है