भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
दाग अच्छे हैं / अमित कुमार अम्बष्ट 'आमिली'
Kavita Kosh से
दामन का दागदार होना
आज के दौर में
कोई हैरत की बात नहीं
क्या पता?
भूखे बच्चों ने फिर
माँ का हौसला आज़माया होगा,
आज उसके झोपड़े से आ रही है
भात के पकने की खुशबू!
शायद रात फिर उसने
अपनी देह को भट्टी पर चढ़ाया होगा।
नाखूनों के कुछ निशान
अब भी ताजा हैं
उसकी कमर के मोड़ पर,
जरूर अंधियारे आंगन में
कोई जानवर घुस आया होगा,
सफेदपोशों की कमीज़
बेदाग ही होती है अक्सर
यह समाज का नज़रिया है,
कोई रब की अदालत नहीं है,
मुमकिन है फैसला
आरोपी के हक में ही आया होगा।
रूह पर लगे दाग से
दामन पर लगे दाग अच्छे हैं!
खुदा ने सोचा होगा बहुत तफसील से
फिर दाग चाँद पर भी लगाया होगा!