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दाढ़ी बनाते हुए कुछ कविताएँ... / प्रेमरंजन अनिमेष

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 1. आदिरूप
                                      
किस तरह
और पहले किस आदिम मनुष्य ने
साफ निकाला होगा अपना चेहरा
आदिम अँधेरी गुफ़ा से सूर्य जैसे

और कब ?

जब साफ़ की
खेती के लिए पहली ज़मीन ?

और क्या दोनों के
एक थे औजार...?


2. संस्करण
                                
अच्छा बनने के लिए
तरह तरह से पड़ता
ख़ुद को बनाना

रोज़-रोज़
आईने के आगे
अपने को ही मुँह बिराना...


3. ख़याल
                                                           
ख़ुद की किसको लगती बास
अपने को कब चुभते रूखे ये बाल

अपनी हजामत भी
दरअसल किसी और का ख़याल...


4. तभी
                                                             
फिर बनाते हुए
लगता सोचने
और कट जाता

उत्सुक बच्चों जैसे
उसी समय
आकर झाँकते
विचार

अपने हाथ में होती जब
अपने ऊपर चलने वाली धार...


5. बे-शिकायत

देखा देखी
छुप्पा छुप्पी

किसी बच्चे के
दाढ़ी बनाने जैसा
प्यार पहले पहल का

झूठ बिना मूठ तुक बेतुका

मगर एक अनुभव
सिहराता गुदगुदाता

और ध्यान रहे यह भी
हर औजार खुला
आपने ही था छोड़ा...


6. सिद्धि
      
वैसी सँभाल
कि बाल
कटें
नहीं गाल

जिन्दगी ढूँढ़ती
कुछ ऐसी ही धार
जैसे प्यार...


7. बरबस
                                       
प्यार का समय नहीं कोई

दाढ़ी बना रहा होता
कि दबे पाँव आकर पीछे से
गले में आ झूले
बाँहें डाल

यह समय नहीं प्यार का
कहता गाल फुलाता
पानी के छींटे मारते

और जुट जाता
फिर से हजामत में

प्यार का कोई समय नहीं

होंठों पर रख कर थोड़ी-सी आग
चुरा ले जाए वह जामन-सा कुछ झाग !


8. महीनी
                   
बढ़ी दाढ़ी
बन जाती सीधे उस्तरे से

पर उससे ज्यादा तरद्दुद
फिर उल्टे उस्तरे
छूटे खूँटों को
उकटने में

उनसे निपटने में...


9. अव्यवस्था

यह ब्रश फेन लगा इसी तरह
यह पानी का कटोरा कतरनों भरा
यह साबुन छूटा पड़ा
और कसी हुई कतरनी दोधारी

इसी आदमी पर है घर संसार की
पूरी ज़िम्मेदारी...


10. पानी पत्ती

ब्रश ?
क्रीम ?
उस्तरा ?
आईना ?

न ! मुस्कुराता वह
और पानी फेर चेहरे पर
जेब से एक पत्ती निकाल कर
हो जाता शुरू

ऐसे इनसान का क्या
मुझे लगता
एक दिन जब इतना भी
होगा नहीं

माथे के पसीने
और हाथ के नाखून से
काम चला लेगा...


11. संयोग

वे जो बचे

दाढ़ी बनाते
किसी कोने किसी खोह में
छूटे रह गए
बाल सरीखे

पर अकड़ इस तरह ऐसा गुमान
जैसा बचना उनका अपना विधान...


12. औचित्य
       
खिंच जाती खाल
कराह उठते
कटते-छूटते बाल

समय के साथ
बढ़ता जाता प्रतिरोध

वक़्त के साथ दरकार
और तेज़ धार
उसी जंगल को काटने के लिए
पहले से पैने
औजार

और यहाँ इस पुरानी पत्ती से
बना रहे दाढ़ी
बाइसवीं बार...


13. फिर भी

कल तो फिर से
उग ही आएँगे
बढ़ जाएँगे
रूखे ये काँटे

आज क्या इसीलिए
   
पूरी लगन पूरे जतन से
न करें सफाई
न बनाएँ दाढ़ी
साफ़ और चिकनी...?

हजामत कोशिश है
बनने की

आदम के
आदमी बनने की

क्षमा करें अगर यह भी
लगे अत्युक्ति
अतिशयोक्ति...


14. अक्स

लगता कोई पुकार रहा

और मैं निकल आता

आधी दाढ़ी बनाए
चेहरे पर झाग फेन लगाए

सिर उठा कर देखता
आसमान के आईने में
कोई अपना सा
चेहरा...


15. लगना
                                    
जरा सा लगते
सिहर जाते
इस कदर लहरता
छनछना कर

ऐसी ही महीन
हो अपनी सोच
कि छुए इसी तरह
दूसरों को लगी खरोंच...


16. गुमान
             
यह सोचना
कि इससे
देखने
लायक हो जाएगा
यह चौखटा

कुछ नहीं
मुगालते के सिवा

दाढ़ी बनाना भी
है दरअसल
अपने को बनाना...


17. विनय पाती

देर से शुरू किया
और बन्द कर दिया पहले

न घर न द्वार
न पैसे रिश्ते पहचान

कुछ भी तो नहीं बनाया
इस जीवन में
अपनी हजामत के सिवा...!


18. सन्तोष
 
चले जाते मीलों
क्या-क्या कर जाते

यह सोच-सोच कर अब
बाक़ी उमर न गँवाएँ

जिन्होंने ख़ुद से
बनाई अपनी हजामत
अनगिन बार

ख़ुश हो जाएँ
कि इस तरह उन्होंने
लाख दो लाख बचाए...


19. लय
                                      
कहीं तेज़ कहीं धीमी
कभी कोमल कभी कठोर

यह लय भी क्या बहुत कुछ
प्यार की तरह नहीं...?


20. अभिप्राय
                              
अपनी ख़ातिर
तो होते अधिकतर

कहो यह पुरुषार्थ किसके लिए ?

क्या दाढ़ी बनाना
एक पुरुष की कोमलता...?

बनाने के बाद
कुछ सोचता
अपना हाथ फिराता चेहरे पर
किसी और हाथ की तरह...


21. परख
                                        
लड़के
देख कर लड़की पसन्द करते

वह भी करे देख कर --
दाढ़ी बनाना देख कर

कोई अपनी हजामत कैसे बनाता है
उससे भी पता चलता है
वह आदमी कैसा है...


22. उद्घाटित

इतने दिनों बाद
साफ़ होकर सामने आया

कुछ खोया लगता
कुछ इकहरा

यह चेहरा अनावृत्त सा...


23. नवोदय

पहली बार
एक तरुण ने
तराशा है
अपना आप इस तरह

अब देखें आँखें
कौन मिलाता

आईने में
एक सूरज
नया अचीन्हा...


24. प्रक्रिया

अभी तो
उकेरा है
सँवारा है
अपने को

कवि है
हुआ ज़रूरी
तो ख़ुद को
तोड़ेगा भी...!


25. अपूर

पूरे मनायोग से
पूरी हजमात होने के बाद भी
किसी ओर से हाथ फिराते
लगता कुछ छूट गया

किसी हुनर किसी कला में
कहाँ पूर्णता...

26. जतन
                                      
साबुन पानी नमक
सबका साथ होने पर भी
ज़रा-से चेहरे के
इस हिस्से पर
तरह-तरह से बार-बार
पड़ता धार को घुमाना

इतना आसान कहाँ
इस जीवन में कुछ भी
बनाना सहेजना सजाना...