भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
दाणा’र तूंतड़ा / कन्हैया लाल सेठिया
Kavita Kosh से
फटक’र छायलो
बगाया परै तूतड़ो
राख्या दाणां नै कर’र
काळजै री कोर
पण लाग्या जद
ऊंखळी में कुटीजण
चाकी में पिसिजण
जणां समझ्या दाणा
छायलो मिनख रो भायलो
आपणो बैरी !