भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

दादा का अखबार / आर.पी. सारस्वत

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

सुबह-सुबह दादा जी चाहें
बस भैया अखबार!

ऐनक ऊपर-नीचे करते,
पूरे पन्ने जमके पढ़ते।

थकते नहीं जरा भी,
ताजा दम दिखते हर बार!

जो भी जहाँ इन्हें मिल जाते,
सबसे पहले खबर सुनाते!

एक खबर के टुकड़े-टुकड़े
करें हजारों बार!

चाय पड़ी ठंडी हो जाती,
चीख-चीख दादी थक जाती।

खबरों में ही सिमट गया है,
दादा का संसार।