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दादा जी और चिंटू / प्रकाश मनु

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रंग-बिरंगी ढेर किताबें
दादा जी की अलमारी में,
जैसे चिड़ियों की कतार है
प्यारी-प्यारी फुलवारी में।

पहने चश्मा दिन-दिन भर क्या
पढ़ते रहते हैं दादा जी,
दादी आकर रोज टोकतीं
काम करो मत अब ज्यादा जी।

पर दादा जी मुसकाकर फिर
पढ़ने में हो जाते लीन,
ढेर किताबों में दादा जी
कैसा बढ़िया-सा यह सीन!

पढ़ते-पढ़ते थक जाते तो
कमरे में टहला करते हैं,
नन्हा चिंटू समझ न पाता
चुप-चुप क्या सोचा करते हैं?

आखिर रह न पाया चिंटू
गया ठुमककर उनके पास,
बोला-फुरसत में हूँ मुझको
काम बताओ कोई खास!

दादा जी ने ढूँढ़ निकाली
फोटू वाली एक किताब,
फूल छपे थे उसमें बढ़िया
चंपा, चूही और गुलाब।

देख-देख खुश होता चिंटू
ताजी बजा-बजा हँसता है,
संग-संग हँस देते दादा जी
तब कितना अच्छा लगता है!