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दादा तुम कहाँ हो? / बीरेन्द्र कुमार महतो

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किस दिशा, किस ओर
मेरे आने से पहले ही तुम
क्यों मुझसे रूठ गये
कहो न, दादा तुम कहां हो?
नहीं लगता तुम्हारे बिन
मेरा मन,
जब दादी सुनाती है
तुम्हारी प्यारी बातें,
और मैं
सुनते-सुनते सो जाती हूॅं
दादी की गोद में,
कहो न, दादा तुम कहां हो?
दादी की डबडबायी सी ऑंखों से
ढरकते आंसूओं में डूब जाती हूॅं
और फिर ढूंढती हूॅं
सपनों की उस दुनिया में
जहां, सिर्फ और सिर्फ
सपनें ही हैं,
कहो न, दादा तुम कहां हो?
दादा तुम कहां हो...?