भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

दादा दादी बहुत रिसाने / प्रभुदयाल श्रीवास्तव

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

दादा दादी आज सुबह से,
बैठे बहुत रिसाने हैं

नहीं किया है चाय नाश्ता,
न ही बिस्तर छोड़ा है।
पता नहीं गुस्से का क्योंकर,
लगा दौड़ने घोडा है।
अम्मा बापू दोनों चुप हैं,
बच्चे भी बौराने हैं।

शायद खाने पर हैं गुस्सा,
खाना ठीक नहीं बनता।
या उनकी चाहत के जैसा,
सुबह नाश्ता न मिलता।
हो सकता है कपडे उनको,
नए-नए सिलवाने हैं।

कारण जब मालूम पड़ा तो,
सबको हँसी बहुत आई।
बापूजी का हुआ प्रमोशन,
बात उन्हें न बतलाई।
डाँट रहे अम्मा बापू को,
क्यों न होश ठिकाने हैं।

अम्मा समझीं बापू ने यह,
बात उन्हें बतलादी है।
बापू समझे माँ ने उनके,
कानों तक पहुँचा दी है।
अम्मा बापू से मंगवाली,
माफ़ी, तब ही माने हैं।