दादी का पंचतन्त्र / कुमार कृष्ण
बहुत बार सोचता हूँ-
दादी के पंचतन्त्र के बारे में
सोचता हूँ कहाँ लुप्त हो गयीं
राक्षसों की वे जातियाँ
जो एक आवाज़ पर रख दिया करते थे-
तमाम तरह के गहने, हीरे-जवाहिरात
अपनी गुफा के बाहर
शादी-ब्याह के लिए
दादी अकसर सुनाया करती थी-
गुफाओं की रहस्यमयी कहानियाँ
दादी ने नहीं देखे थे कभी राक्षस
नहीं देखे थे कभी उनके हीरे-जवाहिरात
पर उसने सुने थे अपनी दादी से
राक्षसों की ईमानदारी के बेशुमार किस्से
वह कहती थीं-
'राक्षस होते हैं बेहद ईमानदार, वादे के पक्के
होते हैं अत्यन्त बलशाली
बड़े धनवान
पर वे नहीं जानते रोटियाँ पकाना
उनको आता था बस कच्चा मांस खाना
वे नहीं जानते थे आग के बारे में
नहीं जानते थे राग के बारे में'
दादी सुनाती थीं-
'एक दिन चखा दिया
सेवकराम साहूकार ने
राक्षसों को मालपुये का स्वाद
उस दिन से राक्षस हो गए ग़ुलाम
माँगने लगे बार-बार मालपुआ
माँगने लगे दाल-रोटी
उन्होंने छोड़ दिया कच्चा मांस खाना
सेवकराम ने ख़ाली कर दीं
राक्षसों की रहस्यमयी गुफाएँ
ख़ाली कर दीं उनकी तमाम तिजोरियाँ
वह माँगता रहा-
दाल-रोटी मालपुए के बदले हीरे-जवाहिरात
हो गए कंगाल धीरे-धीरे
गुफाओं के राक्षस
रोटी की भूख ने मार दिये
धीरे-धीरे तमाम राक्षस'
दोस्तों ! बड़ी ख़तरनाक होती है-,
नमक की मार
नमक का प्यार
लग जाए एक बार जिस जीभ से
बढ़ जाती है उस शरीर की प्यास
नमक ईमान है स्वाभिमान है
मनुष्यता की पहचान है
नमक ख़ूबसूरत सपनों की खान
मनुष्य की जान है
नमक जब कभी बन जाता है गाली
बाहर से नहीं मनुष्य अन्दर से मरता है
नमक खाने से बार-बार डरता है।