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दादी माँ का बगीचा / शकुंतला कालरा
Kavita Kosh से
प्यारा-प्यारा एक बगीचा
जिसको दादी माँ ने सींचा,
हरदम रहती है हरियाली,
चिड़ियाँ चहकें डाली-डाली।
रंग-बिरंगे फूल खिले हैं,
भौरे जिनसे आन मिले हैं,
फूल सदा रसपान कराते,
वे फूलों को गीत सुनाते।
दादी का हर फूल दुलारा,
सबका रंग उसे प्यारा,
सबकी ख़ुशबू उसको भाती,
संग तितलियों के वह गाती।
हर पौधे को लाड़ लड़ाती,
प्रदूषण से उसे बचाती,
हरे चमकते वे इठलाते,
गीत ख़ुशी के हरदम गाते।
यह जंग उसकी बगिया सारा,
इक-इक फूल उसे प्यारा,
हँसते-हँसते हमको रहना,
यह है दादी माँ का कहना।