भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

दादी माँ / बाबूराम शर्मा 'विभाकर'

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

मम्मी की फटकारों से
हमें बचाती दादी माँ।
कितने प्यारे वादे करती-
और निभाती दादी माँ।
पापा ने क्या कहा-सुना,
सब समझाती दादी-माँ!
चुन्नू-मुन्नू कहाँ गए,
हाँक लगाती दादी माँ।
ऐनक माथे पर फिर भी
शोर मचाती दादी माँ।
‘हाय राम! मैं भूल गई’-
हमें हँसाती दादी माँ।
गरमा-गरम जलेबी ला,
हमें खिलाती दादी माँ।
कभी शाम को अच्छी सी
कथा सुनाती दादी माँ,
खूब डाँट दे पापा को,
भौहें चढ़ाती दादी माँ।
हम भी गुमसुम हो जाएँ,
रोब जमाती दादी माँ!