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दादी वाला गाँव / इंदिरा गौड़
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पापा याद बहुत आता है
मुझको दादी वाला गाँव,
दिन-दिन भर घूमना खेत में
वह भी बिल्कुल नंगे पाँव।
मम्मी थीं बीमार इसी से
पिछले साल नहीं जा पाए,
आमों का मौसम था फिर भी
छककर आम नहीं खा पाए।
वहाँ न कोई रोक टोक है
दिन भर खेलो मौज मनाओ,
चाहे किसी खेत में घुसकर
गन्ने चूसो भुट्टे खाओ।
भरी धूप में भी देता है
बूढ़ा बरगद ठंडी छाँव,
जिस पर बैठी करतीं चिड़ियाँ-
चूँ-चूँ कौए करते काँव।