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दादी / प्रज्ञा रावत
Kavita Kosh से
जब भी याद आती हैं अम्मा
तो याद आते हैं दो गोरे हाथ
कोयले में सने हुए
दिखते हैं पैर जो फटकर
पत्थर हो चुके हैं
जिनमें उग चुके हैं
छोटे-छोटे पेड़
देखती हूँ सुन्दर चेहरा
जो नींद में ही हूँका
देता जाता है दादा की पूरे
दिन की कहानी पर
और मैं याद करते-करते
धीरे से लेट जाती हूँ
अम्मा की गोद में।