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दादी / मीठेश निर्मोही
Kavita Kosh से
सळवट नैणां
उणियारै सूं झांकती
धूजतै हाथां
डिगमिग गेडी झाल
ढांणी-ढपांणी
संभाळती आवै
थूं !
चढता सूरज नै
थड़ियां करावण
बण जावै
गाडूलियौ।
के
कूंपळां हालरियौ हुलराय
हेत रै भाखर चाढ
रूंख बण जावण री
आसीसां खळकावै
थूं।