दामन-ए-तार-तार ये,सदक़ा है नोक-ए-ख़ार का / सरवर आलम राज 'सरवर'
दामन-ए-तार-तार ये,सदक़ा है नोक-ए-ख़ार का
शुक्र-ए-ख़ुदा कि मुझसे कुछ रब्त<ref>संबंध</ref> तो है बहार का!
तेरे मक़ाम-ए-जब्र से मेरे मक़ाम-ए-सब्र तक
सिलसिला-ए-आरज़ू रहा दीदा-ए-अश्कबार<ref>रोनेवाला</ref> का
क़िस्सा-ए-दर्द कह गया लह्ज़ा-ब-लह्ज़ा नौ-ब-नौ<ref>नया-नया</ref>
"पर भी क़फ़स<ref>पिजड़ा</ref> से जो गिरा बुल्बुल-ए-बेक़रार का"
मंज़िल-ए-शौक़ मिल गई कार-ए-जुनूं हुआ तमाम
इश्क़ को रास आ गया आज फ़राज़ दार<ref>ऊँची फाँसी का तख़्ता</ref> का !
ज़ीस्त की सारी करवटें पल में सिमट के रह गईं
सदियों का तर्जुमां था लम्हा वो इन्तिज़ार का
ज़िक्र-ए-हबीब हो चुका फ़िक्र-ए-ख़ुदा की ख़ैर हो !
चाक रहा वो ही मगर दामन-ए-तार-तार का !
सोज़-ओ-गुदाज़<ref>सुख-दुख,रस</ref>-ए-ज़िन्दगी अपना ख़िराज<ref>महसूल</ref> ले गया
नौहा-कुनां में रह गया हस्ती-ए-कम-अयार<ref>बेकार की ज़िन्दगी</ref> का
हुस्न की सर-बुलंदियाँ इश्क़ की पस्तियों<ref>लघुता,विनम्रता</ref> से हैं
सोज़-ए-खिज़ां से मोतबर<ref>ऐतबार के क़ाबिल</ref> साज़ हुआ बहार का
नाम-ए-ख़ुदा कोई तो है वज़ह-ए-शिकस्त-ए-आरज़ू
यूँ ही तो बेसबब नहीं शिकवा ये रोज़गार का ?
नाम-ओ-नुमूद<ref>प्रगट,अवतार</ref> एक वहम और वुजूद इक ख़याल !
अपने ही आईने में हूँ अक्स मैं हुस्न-ए-यार का !
हर्फ़-ए-ग़लत था मिट गया अपने ही हाथ मर गया
अब क्या ख़बर कि क्या बने "सरवर’-ए-सोगवार<ref>शोकग्रस्त </ref> का !