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दामन-ए-शौक़ को, फूलों से भरा रखना था / मंजूर हाशमी

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दामन-ए-शौक़<ref>अभिलाषा का आँचल</ref> को, फूलों से भरा रखना था
कोई मौसम हो, हर इक ज़ख़्म हरा रखना था

जीत मुमकिन थी, हमारी तो उसी सूरत में
दाँव पर और भी, कुछ जाँ के सिवा रखना था

याद आता है बहुत, बे-सर-ओ-सामानी<ref>जीवन की आवश्यक सामग्री</ref> में
खो दिया वो भी, जो इक हर्फ़-ए-दुआ<ref>प्रार्थना का शब्द</ref> रखना था

शहर-ए-उम्मीद<ref>आशाओं का नगर</ref> में, अब बन्द पड़े सोचते हैं
वापसी का, कोई दरवाज़ा खुला रखना था

साथ देना था हवाओं का भी कुछ देर तलक
और चिराग़ों को भी, ता-सुबह<ref>प्रातःकाल तक</ref> जला रखना था

शब्दार्थ
<references/>