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दायम पड़ा हुआ तेरे दर पर नहीं हूँ मैं / ग़ालिब

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दायम<ref>हमेशा</ref> पड़ा हुआ तेरे दर पर नहीं हूँ मैं
ख़ाक ऐसी ज़िन्दगी पे कि पत्थर नहीं हूँ मैं

क्यों गर्दिश-ए-मुदाम<ref>हमेशा की चक्कर</ref> से घबरा न जाये दिल?
इन्सान हूँ, प्याला-ओ-साग़र<ref>जाम</ref> नहीं हूँ मैं

या रब! ज़माना मुझ को मिटाता है किस लिये
लौह-ए-जहां<ref>संसाररूपी पृष्ठ</ref> पे हर्फ़-ए-मुक़र्रर<ref>बार बार लिखा हुआ शब्द</ref> नहीं हूँ मैं

हद चाहिये सज़ा में उक़ूबत<ref>कष्ट</ref> के वास्ते
आख़िर गुनाहगार हूँ, काफ़िर नहीं हूँ मैं

किस वास्ते अज़ीज़ नहीं जानते मुझे?
लाल-ओ-ज़मुर्रुदो--ज़र-ओ-गौहर<ref>लाल,पन्ना,सोना और मोती</ref>नहीं हूँ मैं

रखते हो तुम क़दम मेरी आँखों से क्यों दरेग़
रुतबे में मेहर-ओ-माह<ref>सूरज और चाँद</ref> से कमतर नहीं हूँ मैं

करते हो मुझको मनअ़-ए-क़दम-बोस<ref>पैर छूने से मना</ref> किस लिये
क्या आसमान के भी बराबर नहीं हूँ मैं?

'ग़ालिब' वज़ीफ़ाख़्वार<ref>वृति (पेंशन) पाने वाला</ref> हो, दो शाह को दुआ
वो दिन गये कि कहते थे "नौकर नहीं हूँ मैं"

शब्दार्थ
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