भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

दायरा / धनंजय वर्मा

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

छोटे से कमरे में
एकरसता से
ऊब जब जाता हूँ
यहाँ की कुर्सी वहाँ
वहाँ का सामाँ यहाँ
रख लेता हूँ ।

इस पे भी जब
चैन नहीं मिलता
कैलेण्डर और तस्वीरें
बदल देता हूँ ।

दायरा हमारा
बहुत छोटा है बड़ा होता नहीं है
रहते हुए इसमें जब
हम सब ऊब जाते हैं
कुछ अदल-बदल देते हैं ।