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दायरा / धनंजय वर्मा
Kavita Kosh से
छोटे से कमरे में
एकरसता से
ऊब जब जाता हूँ
यहाँ की कुर्सी वहाँ
वहाँ का सामाँ यहाँ
रख लेता हूँ ।
इस पे भी जब
चैन नहीं मिलता
कैलेण्डर और तस्वीरें
बदल देता हूँ ।
दायरा हमारा
बहुत छोटा है बड़ा होता नहीं है
रहते हुए इसमें जब
हम सब ऊब जाते हैं
कुछ अदल-बदल देते हैं ।