भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
दायें-बायें / मदन डागा
Kavita Kosh से
मैं तुम्हें कैसे समझाऊँ
फूल की गन्ध
रंग से कैसे बतलाऊँ ?
भई जो दायें दौड़ता है
वह बायें नहीं दौड़ता
और जो दोनों तरफ़ दौड़ता है
वह दौड़ता लगता तो है
पर हकीकत में दौड़ता नहीं
खड़ा रहता है, खड़ा
तटस्थ मनोवृत्ति वाले समाज में
वही सबसे बड़ा
वही रहता है
तेरे-मेरे कन्धों पे चढ़ा
इसी से दौड़ता नज़र आता है
दुनिया का इतिहास
यही तो बताता है
सबसे ज़्यादा खतरा उसी से होता है
उससे नहीं
जो बोझा ढोता है ।