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दारू एगो मस्त जहर / हम्मर लेहू तोहर देह / भावना
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हर बात के पीछे होइअऽ
एगो कारन
ई हमहु बुझइत हती
मुदा दारू पीये के कारन
आई तक हम न बुझ पइली
हरखित के ननकिरबा
कहइत रहे-
कि दारू पीला से
सब पीड़ा हो जाइअऽ हरन
तइयो ई बात
हमरा पल्ले न परल
कि कइसन पीड़ा-हरन होईअऽ
आऊर केना
ननकिरबा के बाबू
ओई दिन पी लेलन दारू
आ अपना के कहे लगलन-
राजा-महाराजा।
तइयो हम न समझली
आखिर कथी हुए ई दारू
जेकरा पीछे अदमी
अपने आप के भुला देइअऽ?
रामोपीरित के घर में
तमासा हम देखइत रही
कि कइसे दारू के लत में
खाइत-पीअइत परिवार
बरबाद हो गेल
बहुत सोचला पर
हमरा बुझाएल इहे
कि दारू हए एगो मस्त जहर
जे धीरे-धीरे खतम करइअऽ
पीये वाला/आ साथे-साथे
ओकर घर-परिवार के।