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दालानों की धूप छतों की शाम कहाँ / बशीर बद्र

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दालानों की धूप छतों की शाम कहाँ
घर के बाहर घर जैसा आराम कहाँ

बाज़ारों की चहल-पहल से रोशन है
इन आँखों में मंदिर जैसी शाम कहाँ

मैं उसको पहचान नहीं पाया तो क्या
याद उसे भी आया मेरा नाम कहाँ

दिन भर सूरज किसका पीछा करता है
रोज़ पहाड़ी पर जाती है शाम कहाँ

लोगों को सूरज का धोखा होता है
आँसू बनकर चमका मेरा नाम कहाँ

चंदा के बस्ते में सूखी रोटी है
काजू, किशमिश, पिस्ते और बादाम कहाँ