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दासी / रातें न रहीं वो
Kavita Kosh से
रचनाकार: ?? |
रातें न रहीं वो न रहे दिन वो हमारे।
अब तुम ही बता दो कि जियें किसके सहारे।।
आ जाओ तड़पता है जिया दर्द के मारे।
दम घुट के मर जाते हैं अरमान बिचारे।। अब तुम ही...
कोई तो उन्हें जाके ये पैगाम मेरा दे।
इक रोता हुआ दिल तुम्हें दिन रात पुकारे।। अब तुम ही...