भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
दास्तान-ए-इश्क, दरमियान-ए-कोम्पोज़िंग / नबीना दास / रीनू तलवाड़
Kavita Kosh से
तुमने हाथ बढ़ाया
प्रतीक्षा के दिनों
की ओर, सुलगते हुए
सिगरेट के टुकड़े
उम्मीद-भरे राख-दान
पर (जो प्रेम में पागल है
वो वाला) जिसका कश
खींचा था लय-बद्ध
पँक्तियों और जगमगाती
फन्तासियों के उर्दू शायर ने
किया था जिसने तुम्हें
आकर्षित अपने
लहराते छल्लों से :
उठाओ उन्हें, छुओ
उन्हें अपने होंठों से,
गहरी खींचो अपनी
सांस, थूक, चाह
जल्दी अन्दर-बाहर
इससे पहले कि आएँ
किसी के पैरों की आहटें
दौड़ती हुईं देखने के लिए
कि दिलों के बीच
क्या सुलग रहा है
और देखने अमृता प्रीतम
के स्याही-चूमे दिल
की जँगली आग
जैसी कल्पना के
लम्बे दिनों को ।
मूल अँग्रेज़ी से अनुवाद : रीनू तलवाड़