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दास कबीरा की चादर तो कोरी तभी रही / पुरुषोत्तम प्रतीक

दास कबीरा की चादर तो
कोरी तभी रही
पकड़ी चालाकी दुनिया की
कह दी सही-सही

बड़े-बड़े सब ब्रह्म हो गए, छोटे सारे ठूँठ
दूध और पानी दो सच भी मिल क्यों होते झूठ
बोला वह, ईजाद हो गई
काली क़लम-बही

दायें नीच, नीच जो बायें उनको क्या टोटे
ऊँच अगर नीचा हो तो तासीर नहीं लौटे
पानी बर्फ़, बर्फ़ फिर पानी
दूध न हुआ दही

राजा-राजा रहे खेलते अन्धों में ताखे
आँकी करनी-कथनी सबकी सबके गुन आँके
पाखण्डों को सीधी-साधी
बकनी बात कही