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दिख रहे बाहर से तो हम-तुम जुड़े-जुड़े / सांवर दइया

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दिख रहे बाहर से तो हम-तुम जुड़े-जुड़े।
लेकिन भीतर से है बहुत उखड़े-उखड़े।

नापने को नप लेते हम भी आकाश,
पंख खोलते ही मौसम ने थप्पड़ जड़े।

इंतजार की भी तो एक हद होती है,
राखियाने लगे हैं अंगारे पड़े-पड़े।

कब समझी हमने तीसरे की चालकी,
हम तो उम्र भर आपस में ही मरे-लड़े।

सुना है- आज भी गंगा में तो पानी,
प्यासे होंठ लिए उधर तुम, इधर हम खड़े।