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दिगबोई में / कुमार विमलेन्दु सिंह

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कथाओं के एरावत से
पूर्णत: भिन्न
इन हाथियों का
रंग और काया
भय उत्पन्न करने वाली थी
और उनके ऊपर बैठा व्यक्ति
इन्द्र नहीं मजदूर था
प्रयोजन एकमात्र
तेल खोजना था
दिगबोई में

बात उन्नीसवीं शताब्दी के उतरार्ध से
शुरू हुई थी
योजना और इच्छाशक्ति का संगम था
धन प्राप्ति का
पूर्ण आश्वासन था
और एक प्रसारित वन था
चुप रहकर
मनुष्य की उच्चशृंखलाओं को
सहने के लिए

उधम ने विवश किया
धरा को
ठीक वैसे ही
जैसे भागीरथ ने किया था
गंगा को
एक अंतर था यहाँ लेकिन
भागीरथ लाना चाहते थे
नदी को
ऊंचाई से नीचे
और यहाँ नीचे ही
प्रचुर द्रव एकत्रित करना था
बहुत-बहुत ऊपर जाने के लिए
तेल मिल गया था
धरती के नीचे
दिगबोई में

एक बस्ती
और धीरे-धीरे एक शहर-सा
बस गया
कई लोग आए
अलग-अलग प्रदेशों से
अब कई लोगों का
घर था यहाँ
संसाधनों को एक बार पुन:
जीवन ने खोज लिया था
अब यहाँ भी प्रेम हो सकता था
युवाओं में परस्पर
अब यहाँ भी
प्रतीक्षा हो सकती थी
अब यहाँ भी
मनोरंजन हो सकत था
अब यहाँ भी जनसंख्या थी
अब यहाँ भी
खेमे बन सकते थे
जब इतना कुछ हो सकता था
तो नेहरू जी भी
आ सकते थे यहाँ
और आए भी एक बार
अब इस आगमन के बाद भी
कुछ विशेष नहीं बदला
मजदूरों का जीवन
दिगबोई में

कई कुएँ खोदे गए
कई लोगों को
रोजगार मिला
कई लोग रहने लगें
कई क्लब बने
और ढ़ेर सारी कहानियाँ बनी
कुछ कम्पनियाँ भी
अंग्रेजों ने बना ली
अपने देश में
उस पैराफिन की
जो यहाँ मिलती थी
और चाय बागान भी
खरीदे उन्होने
यहीं दिगबोई में

मुझे लगता है
सभी कहानियाँ
जो यहाँ बनी
कही नहीं गई
चुना गया कुछ को
और कहा गया
और याद रहे सब को
यह कीर्तिमान
सबके लिए
एक संग्रहालय भी बनाया गया है
यहाँ दिगबोई में

बीते समय की कई वस्तुएँ
रखी गई हैं
संग्रहालय में
और अधिकारियों द्वारा
प्रयोग किए गए
कई उपकरण भी है
मजदूर जिन मशीनों पर
काम करते थे
उन्हें भी सम्हाल कर
रखा गया है
भूपेन हजारिका के साथ
और कई महानुभावों के
पत्र भी रखे गए हैं यहाँ
कुछ वस्तुएँ छूट गई हैं
या छोड़ दी गई हैं
जैसे काम करते समय
घायल मज़दूर के
खून के धब्बों वाले कपड़े
छोटे बच्चों के टूटे खिलौने
आवश्यकता से कम ही
भोजन बना सकने वाले बर्तन
जो दिहाड़ी कमाने वाली
महिलाओं के थे
कुछ प्रेम-पत्र
जो तत्कालीन युवकों ने लिखे होंगे

उस डाकिए की तस्वीर
जो अच्छे-बुरे समाचार लाता था
बिहार और बंगाल के गाँवों से
और भी बहुत कुछ छूट गया है
किसी को तो यहाँ आकार ढूँढना ही होगा
नहीं तो कोई और आकार खोजेगा
तेल के कुएँ खोदेगा
और डूबा डालेगा
उसी कुए में
वही सारी चीजें
जो छूट गई थी
पिछली बार
और फिर
कोई कभी नहीं खोज पाएगा उन्हें
न पृष्ठों पर
न संग्रहालयों में
और कोई माध्यम नहीं रहेगा
यह बता पाने का
कि क्या-क्या था
दिगबोई में