दिगम्बरी / हुंकार / रामधारी सिंह "दिनकर"
उदय-गिरी पर पिनाकी का कहीं टंकार बोला,
दिगम्बरी! बोल, अम्बर में किरण का तार बोला।
(१)
तिमिर के भाल पर चढ़ कर विभा के बाण वाले,
खड़े हैं मुन्तजिर कब से नए अभियान वाले!
प्रतीक्षा है, सुने कब व्यालिनी! फुंकार तेरा?
विदारित कब करेगा व्योम को हुंकार तेरा?
दिशा के बंध से झंझा विकल है छूटने को;
धरा के वक्ष से आकुल हलाहल फूटने को!
कलेजों से लगी बत्ती कहीं कुछ जल रही है;
हवा की सांस पर बेताब सी कुछ चल रही है!
धराधर को हिला गूँजा धरणी से राग कोई,
तलातल से उभरती आ रही है आग कोई!
क्षितिज के भाल पर नव सूर्य के सप्ताष्व बोले
चतुर्दिक भूमि के उत्ताल पारावार बोला!
नये युग की भवानी, आ गयी बेला प्रलय की,
दिगम्बरी! बोल,अम्बर में किरण का तार बोला!
(२)
थकी बेड़ी कफ़स की हाथ में सौ बार बोली,
ह्रदय पर झनझनाती टूट कर तलवार बोली,
कलेजा मौत ने जब-जब टटोला इम्तिहाँ में,
जमाने को तरुण की टोलियाँ ललकार बोलीं!
पुरातन और नूतन वज्र का संघर्ष बोला,
विभा सा कौंध कर भू का नया आदर्श बोला,
नवागम-रोर से जागी बुझी ठंडी चिता भी,
नयी श्रृंगी उठाकर वृद्ध भारतवर्ष बोला!
दरारें हो गयीं प्राचीर में बंदी भवन के,
हिमालय की दरी का सिंह भीमाकार बोला!
नये युग की भवानी, आ गयी बेला प्रलय की,
दिगम्बरी! बोल,अम्बर में किरण का तार बोला।
(३)
लगी है धूल को परवाज़, उडती जा रही है,
कड़कती दामिनी झंझा कहीं से आ रही है!
घटा सी दीखती जो, वह उमड़ती आह मेरी,
कड़ी जो विश्व का पथ रोक, है वह चाह मेरी!
सजी चिंगारियाँ, निर्भय प्रभंजन मग्न आया,
क़यामत की घडी आई, प्रलय का लग्न आया!
दिशा गूँजी, बिखरता व्योम में उल्लास आया,
नए युगदेव का नूतन कटक लो पास आया!
पहन द्रोही कवच रण में युगों के मौन बोले,
ध्वजा पर चढ़ अनागत धर्म का हुंकार बोला!
नए युग की भवानी, आ गयी बेला प्रलय की,
दिगम्बरी! बोल, अम्बर में किरण का तार बोला!
(४)
हृदय का लाल रस हम वेदिका में दे चुके हैं,
विहंस कर विश्व का अभिशाप सिर पर ले चुके हैं!
परीक्षा में रुचे, वह कौन हम उपहार लायें?
बता, इस बोलने का मोल हम कैसे चुकाएं?
युगों से हम अनय का भार ढोते आ रहे हैं,
न बोली तू, मगर, हम रोज मिटते जा रहे हैं!
पिलाने को कहाँ से रक्त लायें दानवों को?
नहीं क्या स्वत्व है प्रतिकार का हम मानवों को?
जरा तू बोल तो, सारी धरा हम फूंक देंगे,
पड़ा जो पंथ में गिरी, कर उसे दो टूक देंगे!
कहीं कुछ पूछने बूढा विधाता आज आया,
कहेंगे हाँ, तुम्हारी सृष्टि को हमने मिटाया!
जिला फिर पाप को टूटी धरा यदि जोड़ देंगे,
बनेगा जिस तरह उस सृष्टि को हम फोड़ देंगे!
ह्रदय की वेदना बोली लहू बन लोचनों में,
उठाने मृत्यु का घूघट हमारा प्यार बोला!
नए युग की भवानी, आ गयी बेला प्रलय की,
दिगम्बरी! बोल, अम्बर में किरण का तार बोला!
(१९३९ ई०)