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दिगम्बर / अशोक वाजपेयी
Kavita Kosh से
जब वृक्ष नंगे हों
उनकी सारी पत्तियाँ झर चुकी हों
हम कितना भयभीत होते हैं
और अपनी दिगम्बरता को
ढँकते हैं इतनी सारी
वनस्पतियों से
हममें जो दिगम्बर हैं
वह कोसों नीचे गहरे
दबा रहता है
दफ़न और
भुलाया हुआ।