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दिग्भ्रान्त राष्ट्र / चन्द्रनाथ मिश्र ‘अमर’

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हे दू अक्टूबर पुण्य दिवस।
अभिनन्दनीय छह, किन्तु कोना अभिनन्दन तोहर
कऽ सकबह, छी आइ विवश।
स्वाधीनताक लऽ नाम विवशता आयल अछि,
रग-रग भ्रष्टाचरणे आइ समायल बाजि रहल
सबतरि डपोरशंखी डिगडिगिया बाजि रहल
जनता मत गमा फेर लटुआयल अछि।
तोँ राष्ट्र पिता केर जन्म दिवस
आ राष्ट्र आइ संत्रस्त कते बीरप्पनसँ
अपहरण बनल उद्योग, लोक चकुआयल अछि,
मिथ्येकेँ बुझि कय सत्य जेना भकुआयल अछि।
बगड़ा चलली खंजनिक चालि
आ अपनो चालि बिसरि गेलै
उन्नतिक शृंग बुझि चलल देश
खत्ते दिस पैस ससरि गेलै।
दिग्भ्रान्त राष्ट्र हिंसाक नोंक पर
आइ चढ़ाय अहिंसाकेँ,
रक्षकक नाम पर भक्षक बनि
भड़काय रहल प्रतिहिंसाकेँ
जे भ्रष्ट सैह उपदेश दैछ
आ देश सुनै अछि कान पाथि,
पल-पल सन्देह बढ़ल जाइछ
भारत माता भसिया न जाथि।
हे पुण्य दिवस दू अक्टूबर।
इतिहास बनल उपहास आइ,
कय रहल सियारो बात-बात पर
सिंहो सँ परिहास आइ।