दिनकर की किरनों से मारी
एक नदी पत्थर के ऊपर तड़प रही है
जैसे घन से छूटी बिजली
नीलम नभ में तड़प रही है
रचनाकाल: १६-०७-१९६१
दिनकर की किरनों से मारी
एक नदी पत्थर के ऊपर तड़प रही है
जैसे घन से छूटी बिजली
नीलम नभ में तड़प रही है
रचनाकाल: १६-०७-१९६१