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दिनचर्या में लिपटे लाप॒ता आदमी की बीमारी कोई / चन्दन सिंह

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एक दिन
भले-चंगे आदमी के पास
आती है बीमारी कोई

आते ही वह पड़ोसियों को दे आती है न्योता
बुला लाती है मित्रों-सम्बन्धियों को
महीनों पहले मिले बेहद व्यस्त मित्र की भाग-दौड़ में भी
खोल आती है वह
फ़ुरसत का कोई न कोई दरवाज़ा

वह आती है
आदमी की देह में बुख़ार बनकर
बहुत दिनों से थर्मामीटर की घुण्डी में पड़े-पड़े
ऊबा हुआ पारा
आदमी की देह की गरमाहट मिलते ही
खिल उठता है
चलो, अच्छा है
चाहे बुख़ार ही सही
बची तो है आदमी के पास कोई गरमाहट

वह आती है
और बीमार आदमी से घर के सभी लोगों का
फिर से परिचय कराती है
अब घर में बीमार आदमी दिखने लगता है
कैलेण्डर में रविवार के लाल रंग की तरह

वह आती है पॉलिथीन की थैलियों में लेकर फल
स्वस्थ आदमी की दुनिया में जिनका प्रवेश वर्जित है
जिन्हें सिरहाने के पास तिपाए पर
दवाइयों के साथ इकट्ठे रखा जाता है

उसके आने के बाद
बीमार आदमी का पता पूछता हुआ
मुहल्ले में एक आदमी पाया जाता है

वह आती है
और दिनचर्या में लिपटे लापता आदमी को
अचानक प्रकट कर देती है
वह उसके होने का सबूत बनकर आती है
एक अकाट्य तर्क
जिसके नीचे निष्कर्ष की जगह लेटा हुआ
बीमार आदमी
है ।