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दिन-रात माह-ओ-साल से आगे नहीं गए / शबनम शकील

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दिन-रात माह-ओ-साल से आगे नहीं गए ।
ख़ाबों में भी ख़याल से आगे नहीं गए ।

थीं तो ज़रूर मंज़िलें इससे परे भी कुछ,
लेकिन तेरे ख़याल से आगे नहीं गए ।

लोगों ने रोज़ ही नया माँगा ख़ुदा से कुछ,
एक हम तेरे सवाल से आगे नहीं गए ।

सोचा था मेरे दुख का मुदावा (इलाज) करेंगे कुछ,
वो पुरसिश-ए-मलाल (पूछताछ) से आगे नहीं गए ।

क्या जुल्म है की इश्क का दावा उन्हें भी है,
जो हद-ए-एतदाल से आगे नहीं गए ।