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दिन अर रात्यां / संजय आचार्य वरुण
Kavita Kosh से
बीतै दिन अर बीतै रात्यां
कुण पुछै मनड़ै री बात्यां।
मन फंय जावै मकड़ जाळ में
खूब करै तड़फातोड़ी
पल पल छिण छिण घटै जिन्दगी
सांस घटै थोड़ी थोड़ी
डरूँ फरूँ सा दिन हुय जावै
हांफीज्योड़ी सूवै रात्यां।
ओजीसाळौ अबखायां रौ
उम्मीदां जद ठोकर खावै
पळक्यां जिण री करै बगावत
उण आंख्यां ने नींद न आवै
काळंूठौ सो दिन लागै अर
धौळी धौळी लागै रात्यां।
बैरी बणै बदन रौ कपड़ौ
जाण बूझ पग टेढ़ा चालै
करै आंगळ्यां आ कुचमादी
खुद री काया गोभा घालै
पीड़ा भोगी दिन हुय जावै
मरै सिसकती नित री रात्यां।