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दिन ऐसे ही अब आयें / योगक्षेम / बृजनाथ श्रीवास्तव
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कुएँ पोखरे
ताल भरें फिर
नदियाँ भी उफनायें
दिन ऐसे ही अब आयें
यहाँ गाँव में पोखर सूखे
और नदी सूखी
ग्राम्यजनों की आँखें लगतीं
आज बहुत रूखी
रोज साँझ को
गाँव मछेरा
भूखा ही सो जाये
दिन ऐसे मत अब आयें
वहाँ शहर में भूजल भी तो
बहुत गिरा नीचे
सूख गये नल पम्पिंग सेट सब
कलश हुए रीते
हड़तालों पर
हुईं बालटी
खग-मृग शोर मचायें
दिन ऐसे मत अब आयें
भौरे व्याकुल कलियाँ व्याकुल
सूख रहीं क्यारी
भरी उमस है गाँव शहर में
फैलीं बीमारी
मीनों के दल
सभी सुखी हों
खग-मृग वन हरषायें
दिन ऐसे ही अब आयें