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दिन किशमिशी-रेशमी, गोरा / शमशेर बहादुर सिंह
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दिन
किशमिशी रेशमी गोरा
मुसकराता
आब
मोतियों की छिपाए अपनी
पाँखड़ियों तले
सुर्मयी गहराइयाँ
भाव में स्थिर
जागते हों स्वप्न जैसे
माँगते हों कुछ...
खिलौना जागता-सा
मौन कोई
क्या वही तो तू नहीं है मन?
× ×
गोद यह
रेशमीगोरी, अस्थिर
अस्थिर
हो उठती
आज
किसके लिए?
× ×
जा
ओ बहार
जा!
मैं जा चुका कब का
तू भी...
ये सपने न दिखा!
जाविदानी है अगर्चे तू
जाविदानी है अगर्चे जिन्दगी
फिर भी
रह म कर!