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दिन की रात की तानाशाही / रोशन लाल 'रौशन'
Kavita Kosh से
दिन की रात की तानाशाही
आदमजात की तानाशाही
बे औकात की तानाशाही
ये हालात की तानाशाही
दो रोटी क्या हमने चाही
दी ख़ैरात की तानाशाही
नंगी गर्मी अकड़ा जाड़ा
अब बरसात की तानाशाही
वो निर्यात की मज़बूरी थी
ये आयात की तानाशाही
मज़हब-मज़हब जंग पतन की
जात-पात की तानाशाही
वर्ग-भेद की आड़ में 'रौशन'
बात-बात की तानाशाही