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दिन गये काली घटाओं के (शरद गीत) / उर्मिल सत्यभूषण
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दिन गये काली घटाओं के
गर्म और तीखी हवाओं के
परस हैं कोमल भुजाओं के
शब्द जैसे हों दुआओ के
रंगीले फूलों के गहने
सलोनी धरती ने पहने
चर्चें हैं इसकी घटाओं के
शब्द जैसे हों दुआओ के
अल्पनाएँ द्वार पर सजतीं
कल्पनाएँ रंग हैं भरतीं
गूँजते हैं स्वर ऋचाओं के
शब्द जैसे हों दुआओं के
पंक्तियों में दीप जलते हैं
पानियों पर दीप तरते हैं
जगमगाते रंग शिखाओं के
शब्द जैसे हों दुआओं के
शारद शाद्वल बन चली आई
पर्व कितने साथ है लाई
सब दीवाने इन फिज़ाओं के
शब्द जैसे हों दुआओं के
नर्म रुत की ताज़गी ले
उत्सवों से जिं़दगी ले ले
रूप भाते इन अदाओं के
शब्द जैसे हों दुआओं के