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दिन ढले याद तुम्हारी ही चली आती है / कैलाश झा 'किंकर'

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दिन ढले याद तुम्हारी ही चली आती है
फिर मुहब्बत की हसीं बात उगी आती है।

प्यार में और इबादत में नहीं है अंतर
शाख पर फूल खिलाने ही कली आती है।

खुश रहें आप, खुशी से न कभी पागल हों
फलते ही डाल ज़रा और झुकी आती है।

मेरे सीने में समंदर-सा उबल जाता ग़म
घीरे-धीरे ही खुशामद से ख़ुशी आती है

ज़ख़्म दिल का न दिखाते हैं छुपाने वाले
ऐसी बातों से ज़माने को हँसी आती है।