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दिन ढल जाए, हाय! रात न जाए / शैलेन्द्र
Kavita Kosh से
दिन ढल जाए हाय, रात ना जाय
तू तो न आए तेरी, याद सताये, दिन ढल जाये
प्यार में जिनके, सब जग छोड़ा, और हुए बदनाम
उनके ही हाथों, हाल हुआ ये, बैठे हैं दिल को थाम
अपने कभी थे, अब हैं पराये
दिन ढल जाए हाय ...
ऐसी ही रिम-झिम, ऐसी फ़ुवारें, ऐसी ही थी बरसात
खुद से जुदा और, जग से पराये, हम दोनों थे साथ
फिर से वो सावन, अब क्यूँ न आये
दिन ढल जाए हाय ...
दिल के मेरे तुम, पास हो कितनी, फिर भी हो कितनी दूर
तुम मुझ से मैं, दिल से परेशाँ, दोनों हैं मजबूर
ऐसे में किसको, कौन मनाये
दिन ढल जाए हाय ...