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दिन तमाशा ख़्वाब हैं रातें मेरी / शमशेर बहादुर सिंह

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दिन तमाशा ख़्वाब हैं रातें मेरी
फिर ग़ज़ल में ढल गईं बातें मेरी

दिल के आईने में मुस्तक़बिल उदास
क्या ख़ुशी देंगी मुलाक़ातें मेरी

गर्मियाँ, आहों भरी तनहाइयाँ
आंसुओं की याद बरसातें मेरी

मेरी क़द्रें वादाहाए-फ़र्दा आज
अह्दहाए-रफ़्ता औक़ातें मेरी

दिल में भी वल्लाह् कितनी दूर हो
हों दुआएँ ही मुनाजातें मेरी

सारे अरमां दिल के दिल में बन्द हों
यूं धरी रह जाएँ सौग़ातें मेरी