भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
दिन तो आते हैं उम्र जाती है / रवि सिन्हा
Kavita Kosh से
दिन तो आते हैं उम्र जाती है
रात क्यूँ रात भर सताती है
भीड़ है हाफ़िज़े<ref> स्मृति (memory)</ref> में यादों की
एक ही है जो गुनगुनाती है
ख़्वाब जो है वही तसव्वुर<ref>कल्पना (imagination)</ref> में
इक हक़ीक़त सी बन के आती है
जी का जुग़राफ़िया<ref>भूगोल (geography)</ref> नहीं हमवार<ref>चौरस, सपाट, चपटा (flat)</ref>
याँ नदी हादसे बहाती है
आप नक़्शे में राह खो बैठे
ज़िन्दगी रास्ते बनाती है
सू-ए-फ़र्दा<ref>आने वाले कल की तरफ़ (towards tomorrow)</ref> चलो मगर धीमे
साथ तहज़ीब भी तो आती है
दिन में तारे फ़ना नहीं होते
रौशनी बहुत कुछ छुपाती है
शब्दार्थ
<references/>