भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
दिन बीता, पर नहीं बीतती साँझ / नामवर सिंह
Kavita Kosh से
दिन बीता,
पर नहीं बीतती,
नहीं बीतती साँझ
नहीं बीतती,
नहीं बीतती,
नहीं बीतती साँझ
ढलता-ढलता दिन
दृग की कोरों से ढुलक न पाया
मुक्त कुन्तले !
व्योम मौन मुझ पर तुम-सा ही छाया
मन में निशि है
किन्तु नयन से
नहीं बीतती साँझ