दिन बीते / रोहित रूसिया

दिन बीते
कुछ समझ न आया

रिश्ते इक इक
हाथ से छूटे
जन्मों के बंधन भी टूटे
मौन खड़ा मैं क्या कर पाया?

गिरवी सुब
शाम दुपहरी
संघर्षों की लगी कचहरी
पल-पल अपनों ने भरमाया

अपने सब
अपने में खोये
कौन किसी के दुःख में रोये
किसने किसका साथ निभाया

दिन बीते
कुछ समझ न आया

इस पृष्ठ को बेहतर बनाने में मदद करें!

Keep track of this page and all changes to it.