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दिन भी दराज़ रात भी क्यों है फ़िराके-यार में / मोमिन

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दिन भी दराज़1 रात भी क्यों है फ़िराक़े-यार2 में
काहे से फ़र्क़ आ गया गर्दिशे-रोज़गार3 में

ख़ाक में वह तपिश4 नहीं ख़ार में वह ख़लिश5 नहीं
क्यों न हमें ज़्यादा हो जोशे-जुनूँ6 बहार में

मर्ग7 है इन्तिहा-ए-इश्क़8 याँ रही इब्तिदा-ए-शौक़9
ज़िन्दगी अपनी हो गयी रंजिशे बार-बार में

ख़ाक उड़ायी गुल ने यह किसके जुनूने-इश्क़ में
आये हैं कुछ अटी हुई बादे-सबा10 ग़ुबार में

ध्यान में 'मोमिन' आ गयी बहसे-जब्रओ-इख़्तियार11
क़ाबू-ए-यार में हैं हम, वह नहीं इख़्तियार में

शब्दार्थ:
1. दीर्घ 2. प्रेयसी का वियोग 3. संसार-चक्र 4. गरमी 5. टीस 6. उन्माद 7. मौत 8. प्रेम का चरमोत्कर्ष 9. प्रेम की शुरुआत 10. सुबह की वायु 11. वश में रखने का विवाद