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दिन में दिन रात को रात / देवनीत / रुस्तम सिंह

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अन्धेरी ठण्डी शरद रात है
चारों ओर ख़ामोशी है

जुझारू कवि
अपनी दोस्त लड़की के पास जा रहा है

दूर कहीं कुत्ता ताक रहा है

कवि और लड़की के बीच
दरवाज़ा खुलेगा

रात को
इंकलाब की ज़रूरत नहीं है ।

मूल पंजाबी भाषा से अनुवाद : रुस्तम सिंह