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दिन सूरज के पूत नहीं / हम खड़े एकांत में / कुमार रवींद्र

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अंधे युग के दरवाजे पर
हमने दस्तक दी

द्वार खुला - अँधियारे में
हम देख नहीं पाये
सभागार में बैठे थे
असुरों के चौपाये

रामराज की मर्यादा
हमने उनको सौंपी

एक मसीहा आँखें मूँँदे
हमको वहाँ दिखा
सुनते, उसने ही मावस का
महिमा-गान लिखा

सँग उसके हमने
अंधे देवा की पूजा की

हमने प्रश्न किया सरसिज से
वह क्यों नहीं खिला
दिन सूरज के पूत नहीं हैं
उत्तर यही मिला
  
उपजी सुरा सिंधु-मंथन से
हमने