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दिन / देवेन्द्र कुमार
Kavita Kosh से
पीपल के पत्तों से
खटक रहे दिन
इस डाली
उस रस्ते
भटक रहे दिन
तुड़े-मुड़े पत्तों के
बजते हैं शंख
आँखों से झरते हैं
चिड़ियों के पंख
शामों की चौखठ
सिर पटक रहे दिन
जल-भुन के तावे से
कहती है रोटी
खट्टे अँगूर नहीं
है छलाँग छोटी
ताड़ से खजूरों तक
अँटक रहे दिन