भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
दिया अपना जो उसने वास्ता तो / शैलजा नरहरि
Kavita Kosh से
दिया अपना जो उसने वास्ता तो
ख़ुशी इक दे गया मुझसे मिला तो
मुसलसल दर्द है,तनहाइयाँ हैं
यही है उनसे अपना सिलसिला तो
कोई तनहा सहेगा दर्द कब तक
करेगा इश्क़ इक दिन फ़ैसला तो
अभी तक आँख में तस्वीर जो है
यही है दर्द की अब तक दवा तो
मेरी मायूसियाँ कुछ भी न देंगी
हंसी से हो सकेगा राबिता तो
ख़ुदी को मार कर जीना है मुश्किल
ख़ुदा दिखलाये कोई रास्ता तो