भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
दिया क्यों जीवन का वरदान / महादेवी वर्मा
Kavita Kosh से
दिया क्यों जीवन का वरदान?
इसमें है स्मृतियों का कम्पन;
सुप्त व्यथाओं का उन्मीलन;
स्वप्नलोक की परियाँ इसमें
भूल गयी मुस्कान!
इसमें है झंझा का शैशव;
अनुरंजित कलियों का वैभव;
मलयपवन इसमें भर जाता
मृदु लहरों के गान!
इन्द्रधनुष सा घन-अंचल में;
तुहिन विन्दु सा किसलय दल में;
करता है पल पल में देखो
मिटने का अभिमान!
सिकता में अंकित रेखा सा;
वात-विकम्पित दीपशिखा सा;
काल कपोलों पर आँसू सा
ढुल जाता हो म्लान!